मनुष्य अपने आप को बुद्धिमान समझता जानवर आज कुछ ऐसा देखा जिससे ऐसा लगा आज कल जानवर हमसे समझदार ये जानवर हैं आज जब मार्केट से वापस आ रही थी तो एक कुत्ते और मनुष्य के बीच कुत्ते को ज्यादा बुद्धिमान पाया नजारा ये था की मेरे सामने ही कुत्ता फुटपाथ पर चल रहा था जबकि दो तीन लोग उसके साथ ही रोड पर चल रहे थे दुर्घटना होने पर अकसर ड्राईवर या सरकार को दोसी माना जाता है पर यह गलत है हमे सरकार को दोस न देकर खुद सावधानी से रहना चाहिए
Wednesday, December 30, 2009
Thursday, December 24, 2009
और उससे कुछ आगे
और,उससे कुछ आगे मिल जाये
अभी तो खाना पूरा नहीं ,
कपरे में हैं पैबंद लगे
सोने को झोपरी नहीं
उससे कुछ आगे ........
ये सूखी रोटी बस
ये गंदे कपरे हैं सभी
ये टीन की गन्दी झोपरिया
उससे कुछ आगे ........
कुछ मीठा तक नहीं
ये सस्ते कपरे हैं
ये किराया वाला घेर
उससे कुछ आगे ......
मुर्गे के बिना खाना कैसा ?
बस दो कपरों का जोरा
एक कमरे का ही घेर
उससे कुछ आगे ......
ये रोज ही घर का खाना
सस्ते ब्रांड का कपरा
फ़्लैट यानि डब्बा
उससे कुछ आगे ......
फाईव स्टार होटल बिना खाना कैसा ?
कल के फैशन शो वाला कपरा नहीं
ये सस्ते इलाके वाला बंगला
उससे कुछ आगे .......
संतोषम परम सुखं ,
काश ये जीवन में संचय हो जाये
तो हम ये कभी न कहें
और , उससे कुछ आगे ........
अभी तो खाना पूरा नहीं ,
कपरे में हैं पैबंद लगे
सोने को झोपरी नहीं
उससे कुछ आगे ........
ये सूखी रोटी बस
ये गंदे कपरे हैं सभी
ये टीन की गन्दी झोपरिया
उससे कुछ आगे ........
कुछ मीठा तक नहीं
ये सस्ते कपरे हैं
ये किराया वाला घेर
उससे कुछ आगे ......
मुर्गे के बिना खाना कैसा ?
बस दो कपरों का जोरा
एक कमरे का ही घेर
उससे कुछ आगे ......
ये रोज ही घर का खाना
सस्ते ब्रांड का कपरा
फ़्लैट यानि डब्बा
उससे कुछ आगे ......
फाईव स्टार होटल बिना खाना कैसा ?
कल के फैशन शो वाला कपरा नहीं
ये सस्ते इलाके वाला बंगला
उससे कुछ आगे .......
संतोषम परम सुखं ,
काश ये जीवन में संचय हो जाये
तो हम ये कभी न कहें
और , उससे कुछ आगे ........
Sunday, December 20, 2009
गली की बात
बात गली में कही गई
और चेतना के हाशिये पर
मधुमक्खी की तरह मंडराकर
जेहन में छत्ता बनाकर बैठ गई
गली की बात
खेतों से , मेहनत के अडडे से और ठलुओं के ठेकों पर
पथरीली तहों में जमते वक़्त से
घूम फिर कर गली में आई
और गली में
चेतना के हासिये पर
मधुमक्खी की तरह मंडराकर
जेहन में छत्ता बनाकर बैठ गई
और चेतना के हाशिये पर
मधुमक्खी की तरह मंडराकर
जेहन में छत्ता बनाकर बैठ गई
गली की बात
खेतों से , मेहनत के अडडे से और ठलुओं के ठेकों पर
पथरीली तहों में जमते वक़्त से
घूम फिर कर गली में आई
और गली में
चेतना के हासिये पर
मधुमक्खी की तरह मंडराकर
जेहन में छत्ता बनाकर बैठ गई
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