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Monday, January 25, 2010

वो था असली वीर


सलमान की फिल्म वीर पिट गई। काफी मेहनत से बनाई गई और सलमान की महत्वकांक्षी फिल्म थी वीर । जाहिर सी बात है बहुत दुखी होंगे सल्लू। उनकी फैन होने के कारण मैं भी बहुत दुखी हुई । खैर ये तो फिल्म की बात हुई। वास्तविक जीवन में भी कई ऐसे वीर हुए हैं, जिन्हें कोई याद तो क्या करेगा ? जिनके बारे में कोई जानता भी नहीं है। उनकी वीरता भी पिट गई है शायद ।

बिहार के मुंगेर जिले में स्थित रामपुर गां। लगभग 50...60 साल पहले की घटना है । गां के नजदीक ही पानी के कुऐं की खुदाई चल रही थी। अनेक मजदूर काम कर रहे थे। जहां खुदाई का काम चल रहा था ,उससे थोड़ी दूरी पर ही रेल की पटरी गुजरती थी। 50...100 मीटर ही खुदाई हो चुकी थी। कुऐं के अंदर 10 मजदूर खुदाई में लगे थे। तभी अचानक कुऐं के चारों ओर से मिट्टी तेजी से झडने लगी और वापस कुऐं में गिरने लगी।पटरी पर रेलगाड़ी आने के कारण जमीन हिलने से मिटटी शायद तेजी से झड अंदर काम कर रहे मजदूरों पर गिरने लगी । मजदूरों में कोलाहल मच गया। अंदर से मजदूरों को निकालने के लिए रस्सी से बंधी पटरी डाली गई। 9 मजदूर एक दूसरे से पहले निकलने के लिए धक्का मुक्की हर रहे थे। जबकी उनमें से एक मजदूर दीवार थाम कर मिट्टी गिरने की रफ्तार कम करने की कोशिश कर रहा था। 9 मजदूरों को निकाला जा चुका था ।लेकिन जब तक 10 वें मजदूर की बारी आती, तब तक धरती उसे अपने आगोश में ले चुकी थी। मिट्टी गिरने की रफ्तार कम कर उसने अपने 9 साथियों को तो बचा लिया, लेकिन खुद की जान नहीं बचा सका।

आज भी पूरे रामपुर गां में उसकी वीरता के किस्से सुने और सुनाए जाते हैं। लेकिन उस बहादुर का किस्सा उसके गां में ही रह गई। देश तो क्या पूरे बिहार में भी लोग शायद ही उसके बारे में जानते हों। ये तो एक वीर की बात है ऐसे ना जाने कितने वीर हैं जो इतिहास में अपना नाम दर्ज नहीं करा सके ।उनकी वीरता भी पिट गई शायद।

Monday, January 11, 2010

अब गुड़िया नहीं मिलती है यहां


अरे है ये कैसा बाजार ?
सबकुछ ब्लैक एण्ड व्हाईट
संगीत तो सुनाई देती ही नहीं।
घूंघरु की आवाज कहाँ?
वो चूड़ी की खनखनाहट नहीं
रंगीन चुनड़ियों वाली वह दुकान कहाँ ?

लगता है मैं गलत पते पर हूँ ,
रास्ता भटक गई हूँ शायद
वो तो भरापूरा बाजार था।
रंग बिरंगा बाजार था वह,
संगीत का तराना लहराता था वहाँ।
वहां थी घुंघरूओं की आवाज,
चूड़ियों की प्यारी खनखनाहट
और वह रंगीन चुनड़ियों वाली दुकान


बाबा पृथ्वी बाजार यही है क्या?
हां! है तो यही
लेकिन यहां तो सबकुछ बदल गया है।
जब खरीददार नहीं तो दुकान कैसी
लेकिन वो गुड़िया तो मिलती होगी
वो लाल कपड़े वाली गुड़िया

नहीं अब गुड़िया नहीं मिलती है यहां यहां अब रोबोट मिलते हैं।

Friday, January 8, 2010

व्यंग्य


आपको पता है ई महंगईया अपना गुंडाराज कैसे चला रहा है ? अरे हम सोचे कि तनिक पता चले कि भीतरिया बात का है ? सुनने में आया है कि शुरुवात हुआ दलवा और दूधवा के लड़ाई से । दूधवा घमंडी तो तनिक शुरू से ही रहा है। उसको घमंड रहा कि उसका रंग उजला है ओउर प्रोटीन है और सबसे बड़ी बात उसका कोई विकल्प नहीं है।दालवा को पता चला तो तिलमिला गया बोला तुम हो किस दुनिया में । रंग के नाम पर भेद-भाव करने पर कानून सजा देता है।प्रोटीन मुझमें भी है ।और तुम जो विकल्प की बात कर रहे हो तो तुमको पता होना चाहिए कि गरीब लैका-बच्चा के तुम्हारी जगह हमार पानी पिलाया जाता है।दूधवा भी गुस्सा गया बोला चाहे जो हो बाकि ज्यादा महंगा हम ही हैं । दालवा खुनसा के बोला जब ई बात है त देखो हम कैसे तोहरा से आगे जाते है। बोल के इतना जोर का छलांग लगाया कि दूधवा मुंह ताकते रह गया ।
ईधर आलूवा अ सेबवा में लड़ाई छिड़ गई , अब आलूवा कब तक सबकी बोली सहता ? फलवा का परिवार तो पहले से ही चिढाता था। अब घरोवाला ‘ सब्जियां ’आँख दिखाने लगा । बस जाके लड़ गया सेबवा से । फिर वही तू-तू मैं-मैं ; तू महंगा कि हम महंगा ? दोनों ने स्वाभिमान के खातिर जोर से छलांग लगाई ।बाकि आलू केतना भी करे सेबवा से कमजोरे ठहरा । ई कारण सेबवा के करीब तो नहीं बाकि नारंगी अ चीकू के करीब जरूर पहुँच गया ।
अरे एगो बात बताना तो भूल गए! विधानसभा में मंत्री जी और महंगाई मुद्दा में ठन गया ।महंगाई मुद्दा भी खड़ा हुआ सीना ठोक के , भईया पाछे भाजपा जो खड़ी थी ।अब मंत्री जी लगे बाढ़ ,सूखा ,जमाखोरी का गोला छोड़ने ।उधर महंगाई मुद्दा भी लगा सरकारी गोदामों में रखे अनाजों का आंकड़ा निकलवाने ।ई लड़ाई देखके जनता के कुछ आस बंधी रही ; बाकि ईहे मौका पर भाजपा के पेट गड़बड़ा गईल । अब ई अपना पेट संभालें कि महंगाई मुद्दा का साथ दें। बस महंगाई मुद्दा चारो खाने चित्त ।
त अब समझे ई महंगईया अपना गुन्डा राज कैसे चला रहल हैं ।

Wednesday, January 6, 2010



आँख कितनी छोटी है
यही शायद 4-4 या 5-5 की
मुझे बड़ी आँख पसंद है
बिलकुल 6-6 की आँख
इसलिए , मैं अपनी आँख और बड़ी करना चाहती हूँ
शायद 7-7 तक की
कोई कैंची ब्लेड उठा कर
पर , कैसे करूँ यह सब

एक भी कैंची ब्लेड नहीं है पास
परोशी के पास है शायद
मांग के ले आई अपनी आँख बड़ी करने के लिए
अरे , इसमें तो धार ही नहीं है
बिलकुल धार नहीं है
आँख बड़ी नहीं हो पाई
पर कई जगह से छिल गयी है
खून निकल आया है यहाँ
खून पोछती हूँ पर , रुक नहीं रहा
घरवाले फटकार रहे हैं मुझे
तू जन्मजात छोटे आँखों वाली है
फिर आँखें बड़ी क्यों करना चाहती है ?
कैंची ब्लेड क्यों लगा रही है आँखों पर ?
अगर आँख फुट गई तो ?
मैं सोंचने लगती हूँ ....
पर मैं आँख बड़ी करना चाहती हूँ ......