बात गली में कही गई
और चेतना के हाशिये पर
मधुमक्खी की तरह मंडराकर
जेहन में छत्ता बनाकर बैठ गई
गली की बात
खेतों से , मेहनत के अडडे से और ठलुओं के ठेकों पर
पथरीली तहों में जमते वक़्त से
घूम फिर कर गली में आई
और गली में
चेतना के हासिये पर
मधुमक्खी की तरह मंडराकर
जेहन में छत्ता बनाकर बैठ गई
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