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Thursday, December 24, 2009

और उससे कुछ आगे

और,उससे कुछ आगे मिल जाये
अभी तो खाना पूरा नहीं ,
कपरे में हैं पैबंद लगे
सोने को झोपरी नहीं
उससे कुछ आगे ........
ये सूखी रोटी बस
ये गंदे कपरे हैं सभी
ये टीन की गन्दी झोपरिया
उससे कुछ आगे ........
कुछ मीठा तक नहीं
ये सस्ते कपरे हैं
ये किराया वाला घेर
उससे कुछ आगे ......
मुर्गे के बिना खाना कैसा ?
बस दो कपरों का जोरा
एक कमरे का ही घेर
उससे कुछ आगे ......
ये रोज ही घर का खाना
सस्ते ब्रांड का कपरा
फ़्लैट यानि डब्बा
उससे कुछ आगे ......
फाईव स्टार होटल बिना खाना कैसा ?
कल के फैशन शो वाला कपरा नहीं
ये सस्ते इलाके वाला बंगला
उससे कुछ आगे .......
संतोषम परम सुखं ,
काश ये जीवन में संचय हो जाये
तो हम ये कभी न कहें
और , उससे कुछ आगे ........

1 comment:

  1. नए ब्लाग के लिए बधाई योगिता..
    एक बात समझ नहीं आ रही वो है कविता की भाषा...
    जैसे कपङे को कपरा....
    इसमें सुधार कीजिए..
    खैर...भाव बहुत अच्छे है..
    शुभकामनाएँ..

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