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Friday, January 8, 2010

व्यंग्य


आपको पता है ई महंगईया अपना गुंडाराज कैसे चला रहा है ? अरे हम सोचे कि तनिक पता चले कि भीतरिया बात का है ? सुनने में आया है कि शुरुवात हुआ दलवा और दूधवा के लड़ाई से । दूधवा घमंडी तो तनिक शुरू से ही रहा है। उसको घमंड रहा कि उसका रंग उजला है ओउर प्रोटीन है और सबसे बड़ी बात उसका कोई विकल्प नहीं है।दालवा को पता चला तो तिलमिला गया बोला तुम हो किस दुनिया में । रंग के नाम पर भेद-भाव करने पर कानून सजा देता है।प्रोटीन मुझमें भी है ।और तुम जो विकल्प की बात कर रहे हो तो तुमको पता होना चाहिए कि गरीब लैका-बच्चा के तुम्हारी जगह हमार पानी पिलाया जाता है।दूधवा भी गुस्सा गया बोला चाहे जो हो बाकि ज्यादा महंगा हम ही हैं । दालवा खुनसा के बोला जब ई बात है त देखो हम कैसे तोहरा से आगे जाते है। बोल के इतना जोर का छलांग लगाया कि दूधवा मुंह ताकते रह गया ।
ईधर आलूवा अ सेबवा में लड़ाई छिड़ गई , अब आलूवा कब तक सबकी बोली सहता ? फलवा का परिवार तो पहले से ही चिढाता था। अब घरोवाला ‘ सब्जियां ’आँख दिखाने लगा । बस जाके लड़ गया सेबवा से । फिर वही तू-तू मैं-मैं ; तू महंगा कि हम महंगा ? दोनों ने स्वाभिमान के खातिर जोर से छलांग लगाई ।बाकि आलू केतना भी करे सेबवा से कमजोरे ठहरा । ई कारण सेबवा के करीब तो नहीं बाकि नारंगी अ चीकू के करीब जरूर पहुँच गया ।
अरे एगो बात बताना तो भूल गए! विधानसभा में मंत्री जी और महंगाई मुद्दा में ठन गया ।महंगाई मुद्दा भी खड़ा हुआ सीना ठोक के , भईया पाछे भाजपा जो खड़ी थी ।अब मंत्री जी लगे बाढ़ ,सूखा ,जमाखोरी का गोला छोड़ने ।उधर महंगाई मुद्दा भी लगा सरकारी गोदामों में रखे अनाजों का आंकड़ा निकलवाने ।ई लड़ाई देखके जनता के कुछ आस बंधी रही ; बाकि ईहे मौका पर भाजपा के पेट गड़बड़ा गईल । अब ई अपना पेट संभालें कि महंगाई मुद्दा का साथ दें। बस महंगाई मुद्दा चारो खाने चित्त ।
त अब समझे ई महंगईया अपना गुन्डा राज कैसे चला रहल हैं ।

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