Monday, January 11, 2010
अब गुड़िया नहीं मिलती है यहां
अरे है ये कैसा बाजार ?
सबकुछ ब्लैक एण्ड व्हाईट
संगीत तो सुनाई देती ही नहीं।
घूंघरु की आवाज कहाँ?
वो चूड़ी की खनखनाहट नहीं
रंगीन चुनड़ियों वाली वह दुकान कहाँ ?
लगता है मैं गलत पते पर हूँ ,
रास्ता भटक गई हूँ शायद
वो तो भरापूरा बाजार था।
रंग बिरंगा बाजार था वह,
संगीत का तराना लहराता था वहाँ।
वहां थी घुंघरूओं की आवाज,
चूड़ियों की प्यारी खनखनाहट
और वह रंगीन चुनड़ियों वाली दुकान
बाबा पृथ्वी बाजार यही है क्या?
हां! है तो यही
लेकिन यहां तो सबकुछ बदल गया है।
जब खरीददार नहीं तो दुकान कैसी
लेकिन वो गुड़िया तो मिलती होगी
वो लाल कपड़े वाली गुड़िया
नहीं अब गुड़िया नहीं मिलती है यहां यहां अब रोबोट मिलते हैं।
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achhi kavita hai. aur lekhen.
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